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चीन को गन्ने की बगास और मोलासेस से इथेनॉल व बिजली बनाना सिखाएगा भारत

  • Writer: Tritech
    Tritech
  • Dec 16, 2019
  • 2 min read

शीरा व खोई जैसे गन्ने के सह उत्पादों से इथेनॉल व बिजली बनाने की तकनीक सीखने के लिए चीन ने भारत से तकनीकी सहयोग मांगा है। कानपुर स्थित एशिया के इकलौते सरकारी राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआइ) से पहले चरण की बातचीत हो चुकी है। खपत के मुकाबले चीनी का उत्पादन बढ़ाने के लिए गन्ना प्रबंधन में भी चीन ने मदद मांगी है। संस्थान हाल ही में नाइजीरिया, श्रीलंका व मिस्र में हाईटेक लैब स्थापित कराने व उनके तकनीशियन को प्रशिक्षित करने का करार कर चुका है।

गन्ने की प्रोसेसिंग में चीन बहुत पीछे

एनएसआइ के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन बताते हैैं कि चीन में गन्ने के सह उत्पादों का कोई उपयोग नहीं हो पाता है। गन्ने की प्रोसेसिंग व चीनी बनाने की तकनीक में भी वह हमसे बहुत पीछे है। इसी कारण चीन के गोऑक्सी शुगर डेवलपमेंट ऑफिस ने हमसे चीनी का उत्पादन बढ़ाने व गन्ना प्रबंधन के लिए सहयोग मांगा है।


खपत के मुताबिक उत्पादन बढ़ाएगा चीन

भारत में गन्ने से चीनी की रिकवरी 11-12 फीसद तक है, जबकि चीन में 8.5 फीसद ही है। चीन में 150 से 160 लाख टन चीनी की सालाना खपत है। यहां की कुल 233 मिलों से 100 से 110 लाख टन ही चीनी का उत्पादन हो पाता है। इनमें भी 37 मिलें चुकंदर से चीनी बनाती हैैं। चीनी उत्पादन बढ़ाने के लिए संस्थान चीन को गन्ने की उन्नतशील प्रजातियां बताते हुए खेती के तरीके भी सुझाएगा। एनएसआइ गन्ने की पेराई से निकली बेगास (खोई) से बायोगैस, इथेनॉल व साबुन बनाने की तकनीक भी चीन को देगा।

चारों देशों को प्रशिक्षण जनवरी से

मिस्र, श्रीलंका व नाइजीरिया से एनएसआइ पहले ही करार कर चुका है। श्रीलंका में शुगर केन रिसर्च सेंटर व मिस्र में शुगर टेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर को अत्याधुनिक व हाईटेक लैब बनाने में संस्थान मदद देगा। नाइजीरिया में शुगर इंस्टीट्यूट की स्थापना जनवरी से शुरू होने की उम्मीद है। संस्थान के निदेशक प्रो. मोहन बताते हैैं कि जनवरी व फरवरी-20 में संस्थान के प्रोफेसर व तकनीशियन चारों देशों की शुगर इंडस्ट्री की चुनौतियों का अध्ययन करने जाएंगे। मिस्र के शर्करा तकनीशियन को प्रशिक्षण का मॉडल भी तैयार कर लिया गया है।


 
 
 

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